
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
घर के चाहरदीवारी पर रहते – रहते नारियां अब अपनी मंजिल खुद तलाशने में लग गयी हैं। अपनी रुचि के हिसाब से काम करने लगी है। जो चूल्हे -चौकी तक सीमित थी, वह भी कंधे पर बैग टांगकर स्कूल जा रही है, दफ्तर जा रही हैं, फैक्ट्री में जा रही हैं और फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। कोई ब्यूटी पार्लर चला रही है, कोई सिलाई-कढ़ाई में लगी हुई हैं। बुटीक सेन्टर चला रही हैं। कोई साहित्य-संस्कृति-कला के क्षेत्र मे अपना नाम रौशन कर रही हैं । जो चीजें उन्हें पंसन्द नहीं, या उनकी अस्मिता के विपरीत लगती हैं, उनका खुलकर विरोध भी कर रही हैं। खेत से संसद तक और परिवार से राष्ट्र तक नारियां अपने विकास का दस्तावेज खुद लिख रही हैं, यह सुखद बात है। मुझे यह कहते हुए गौरवबोध हो रहा है कि देश के शीर्ष स्थान पर विराजमान माननीय राष्ट्रपति भी महिला ही हैं । पर, यह तो शुरुआत है। बहुलांश महिलाओं को शिखर पर जाना अभी बाकी है। अपने संघर्ष के साथ वे निकल पड़ी हैं, निकल रही हैं। उन्हें निकलना ही चाहिए।
मेनका मल्लिक, साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, मेनकायन, न्यू कालोनी उलाव, बेगूसराय