
फॉर्म जमा करने के बाद नहीं दी जा रही रिसीविंग, मतदाता अधिकारों के खिलाफ सुनियोजित हमला।
बेगूसराय। 11 जुलाई 2025
मोदी सरकार लोकतंत्र को खोखला करने की दिशा में एक और खतरनाक क़दम बढ़ा चुकी है। बिहार में चुनाव आयोग के जरिए अचानक चलाया गया ‘विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान’ संविधान पर सीधा हमला है। यह सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि एक साज़िश के तहत चलाया जा रहा ‘वोटबंदी अभियान’ है, जिसका मकसद गरीबों, मजदूरों, अल्पसंख्यकों और दलित तबकों को वोट देने के अधिकार से वंचित करना है। ये बातें भाकपा (माले) के राज्य सचिव कुणाल ने शुक्रवार को शहर के बड़ी पोखर स्थित संस्कृत उच्च विद्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में कही। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अभियान में मौजूद भारी खामियों को गंभीरता से संज्ञान में लिया है और चुनाव आयोग को उसमें जरूरी सुधार लाने का सलाह दी है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि लोगों से फॉर्म भरवाने के बाद उन्हें कोई रिसीविंग नहीं दी जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से गायब हो जाए, तो उसके पास यह साबित करने का कोई साधन नहीं होगा कि उसने फॉर्म भरकर जमा किया था। यह प्रक्रिया पूरी तरह अपारदर्शी और गैर-जवाबदेह बना दी गई है। जिनके पास आयोग द्वारा तय किए गए 11 दस्तावेज़ों में से कोई एक भी नहीं है, उनके मतदाता बनने या सूची से हटाए जाने का फैसला सीधे इलेक्ट्रॉल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के विवेक पर छोड़ दिया गया है। यह लोकतांत्रिक अधिकारों को मनमाने तरीके से रौंदने की खुली छूट है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था प्रवासी मजदूरों, विदेशों में काम करने वाले लोगों और दूसरे राज्यों में गए नागरिकों के खिलाफ है।कुणाल ने अंत में कहा कि भाकपा (माले) इस लोकतंत्र विरोधी अभियान का पुरजोर विरोध करेगी और मताधिकार की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर संघर्ष तेज किया जाएगा। उन्होंने मांग की कि हर फॉर्म की रिसीविंग अनिवार्य की जाए, प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और गरीब तबकों के मताधिकार पर हमला तुरंत रोका जाए। मौके पर माले जिला सचिव दिवाकर प्रसाद, चंद्रदेव वर्मा, नवल किशोर सिंह, बैजू सिंह व अन्य मौजूद थे।